मैं अकेला ही ज़माने के लिये काफी हूँ.....
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिये काफी हूँ.....
धूप की प्यास बुझाने के लिये काफी हूँ.....
जाग जाऊँ तो जगाने के लिये काफी हूँ.....
जाने किस भूल भुलैय्या में हूँ खुद भी लेकिन,
मैं तुझे राह पे लाने के लिये काफी हूँ.....
डर यही है के मुझे नींद ना आ जाये कहीं,
मैं तेरे ख्वाब सजाने के लिये काफी हूँ.....
ज़िंदगी.... ढूंडती फिरती है सहारा किसका ?
मैं तेरा बोझ उठाने के लिये काफी हूँ.....
मेरे दामन में हैं सौ चाक मगर ए दुनिया,
मैं तेरे एब छुपाने के लिये काफी हूँ.....
एक अखबार हूँ औकात ही क्या मेरी मगर,
शहर में आग लगाने के लिये काफी हूँ.....
मेरे बच्चो.... मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो,
मैं अकेला ही कमाने के लिये काफी हूँ.....