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Wednesday 21 May 2014

NAZER BY Aftab Khan Qadri



इक दिन मिली तुम्हरी नजर से मेरी नज़र
हाथो मे थी  किताब तुम्हरा था पास  घर


 चेहरे पे था नेकब  मगर थी  कुले  नज़र
जो मैकसी मे ना था उसमे मे था वो असर 


जब से दिखा है मुझको उसकी नसी नज़र
रहने लगा हु मे कहा मुझको ही ना खबर


आखे तरस रही है दिदार उनका बस

उनके बिगैर पूछता हु मौत तू किधर


पल पल मर रहा  हु मै तो उनकी ही यादो मे
उनकी  बिगैर  होता  नही है  मुझे  शबर


कैसे न तड़फे उनकी यादो मे आफताब
मसलूब  हो गये है वो आइना दिखा कर
 

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